CG-किसानों के लिए खास खबर : प्रदेश में सर्वाधिक गौमूत्र की खरीदी जांजगीर-चांपा जिले में…..गौमूत्र से बने उत्पाद ब्रह्मास्त्र और जीवामृत से जिले के किसान हो रहे लाभान्वित… पढ़ें पूरी खबर…। चमन बहार

जिले के किसान देवराज और खिलेंद्र सहित 106 किसान जीवामृत एवं ब्रह्मास्त्र का ले रहें लाभ….

जिले के किसानों को खर्चीले रासायनिक कीटनाशकों से मिल रही मुक्ति, कर रहे जैव कीटनाशकों का उपयोग….

Janjgir-Champa : The maximum purchase of cow urine in the state is in Janjgir-Champa district.

जांजगीर-चांपा।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मंशानुरूप महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना के बेहतर क्रियान्वयन के लिए कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा के निर्देशन में जिले में अब तक प्रदेश में सर्वाधिक गौमूत्र की खरीदी की गई है। कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार जांजगीर-चांपा जिला 9 हजार 2 सौ 28 लीटर गौमूत्र खरीदी के साथ प्रदेश में प्रथम स्थान पर है, बिलासपुर 8 हजार 3 सौ 96 लीटर खरीदी के साथ दूसरे और बलरामपुर 6 हजार 6 सौ 57 लीटर गौमूत्र खरीदी के साथ तीसरे स्थान पर है।

इसके साथ ही कलेक्टर सिन्हा के निर्देशन में जिले में गौमूत्र से फसलों में कीटनियंत्रक और वृद्धि के लिए ब्रह्मास्त्र और जीवामृत उत्पाद तैयार किया जा रहा है, जिससे जिले के किसान लाभान्वित हो रहे हैं। जिले में किसान देवराज और खिलेंद्र सहित 106 किसान गौमूत्र से बने उत्पाद जीवामृत एवं ब्रह्मास्त्र का लाभ ले रहें हैं। जिससे जिले के किसानों को खर्चीले रासायनिक कीटनाशकों से मुक्ति मिल रही है और वे जैव कीटनाशकों का उपयोग कर लाभन्वित हो रहे है।

कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार विकासखण्ड अकलतरा के तिलई गौठान एवं विकासखण्ड नवागढ़ के खोखरा गोठान में चार रूपये प्रति लीटर की दर से अब तक 7 हजार 216 लीटर गोमूत्र खरीदी की जा चुकी है तथा गौमूत्र से बने उत्पाद ब्रह्मास्त्र का 106 किसानों के खेतों में प्रयोग कराया गया है।

विकासखण्ड अकलतरा के तिलई गोठान के आरती स्व सहायता समूह की महिलायें गौमूत्र से जीवामृत वृद्धिवर्द्धक और ब्रह्मास्त्र कीटनाशक बना रही है। महिलाओं ने यहां जीवामृत 200 लीटर एवं ब्रह्मास्त्र 9 सौ 11 लीटर बनाकर 8 सौ 64 लीटर उत्पाद विक्रय से कुल 51 हजार 200 रूपये लाभ प्राप्त कर लिया है। इसी प्रकार विकासखण्ड नवागढ़ के खोखरा गोठान में सागर स्व-सहायता समूह की महिलायें गोमूत्र से कीटनाशक बनाने में जुटी हुई है। उन्होंने अबतक 9 सौ 74 लीटर ब्रह्मास्त्र (कीट नियंत्रक) एवं 400 लीटर जीवामृत (वृद्धिवर्धक) बनाकर विक्रय कर 64 हजार 700 रुपये का लाभ प्राप्त कर लिया है।

ब्रह्मास्त्र और जीवामृत उत्पाद का उपयोग करने वाले अकलतरा विकासखंड के ग्राम तिलई निवासी किसान देवराज कुर्मी ने बताया कि उसके पास 5 एकड़ कृषि योग्य कृषि भूमि है जिसमें वह खेती करते है। इस वर्ष में उन्होंने 5 एकड़ में धान फसल लगाया है। उन्होंने बताया कि उनके गांव में सुराजी गांव योजना के तहत गोधन न्याय योजना अंतर्गत ग्राम के गोठान में गौमूत्र खरीदी की जा रही है। इससे जैव कीटनाशक ब्रम्हास्त्र तैयार किया जा रहा है।

कृषि विभाग द्वारा उनके गांव के किसानों को इसके फायदे के संबंध में संगोष्ठी, कृषक परिचर्चा एवं मुनादी के द्वारा दी गई, इससे प्रभावित होकर उन्होंने अपने 3 एकड़ धान फसल में 3 बार 15-15 दिन के अंतराल में कीटनियंत्रण हेतु जैव कीटनाशक ब्रम्हास्त्र का छिड़काव किया है। इससे उन्होंने कीटों पर प्रभावी नियंत्रण पाया है तथा उनके फसल का स्वास्थ्य बहुत अच्छा है। उन्होंने बताया कि पूर्व में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग कर प्रति एकड़ 3 से 4 हजार रूपए लगभग खर्च आता था तथा रासायनिक दवाओं का भी दुष्प्रभाव भी होता था। लेकिन अब ब्रम्हास्त्र जैव कीटनाशक गौठानों के माध्यम से 50 रूपए प्रति लीटर खरीदकर कीट नियंत्रक के लिए खर्च भी कम आ रहा है। जिससे रासायनिक दवाओं की अपेक्षा फसल सुरक्षा लागत में बहुत कमी आयी है।

ब्रम्हास्त्र जैव कीटनाशक हानि रहित है तथा इसका लंबे समय तक फसल पर प्रभाव बना रहता है एवं रासायनिक दवाओं की अपेक्षा फसल एवं पर्यावरण पर दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता है तथा स्थानीय तौर पर असानी से उपलब्ध है। इससे फसल सुरक्षा में समय पर प्रभावी नियंत्रण पाने में सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि गौमूत्र के उत्पादों के बेहतर परिणाम के कारण गांव में मेरे साथ-साथ अन्य कृषक भी अपने खेतों में ब्रम्हास्त्र खरीदकर उपयोग कर रहे हैं।

इसी तरह अकलतरा विकासखंड के ग्राम तिलई के किसान खिलेंद्र कौशिक (पिता रथराम कौशिक) बताते हैं कि इस वर्ष उन्होंने 4.50 एकड़ में धान फसल लगाया है। जिसमें 1 एकड़ में गौमूत्र से तैयार वृद्धिवर्धक का उपयोग किया है। इससे उनके धान फसल का स्वास्थ्य अच्छा है।

पौधों में बढ़वार व कंसो की संख्या अन्य वर्षाे की अपेक्षा अधिक है। इससे रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव से बचाव एवं भूस्वास्थ्य सुधार के साथ-साथ भूमि में जीवांश में वृद्धि होने से उत्पादन लागत में कमी आयी है तथा फसल स्वास्थ्य अच्छा होने के साथ-साथ लगातार स्थिर उत्पादन में बढ़ोत्तरी होने की प्रबल संभावना है।

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