पटवारियों का शासन को खुला खत….

कामचोर और घुसखोर पटवारी…
रायपुर। संसाधनों के अभाव में कार्यरत राजस्व विभाग के कर्मचारी जिसे दुनिया पटवारी के नाम से माफ़ करियेगा घुसखोर पटवारी के नाम से जानती है, ये घुसखोरी – हरामखोरी जैसे भद्दे शब्द आजकल के मीडिया वाले हाँ वही चंदाखोर दलाल मीडिया वाले आसानी से पटवारियों के लिए संबोधन में ला रहे हैं और पटवारी इन सभी बातों को नजरअंदाज करके अपने कार्य में लगे हुए हैं ।
क्या किसी ने कभी पटवारियों की मज़बूरी जानने की कोशिश की है, कि किन – किन परिस्थितियों में उसे अपनी नौकरी बचाने के लिए संघर्ष करते हुए समस्त कार्यों का निर्वहन करना होता है? आजकल सारे पटवारी रिकॉर्ड ऑनलाइन हो चुके हैं, जो कि भुइयां सॉफ्टवेयर के माध्यम से किया जाता है, क्या आपको पता है कि भुइयां सॉफ्टवेयर में कार्य करने के लिए किस किस उपकरण की नितांत आवश्यकता होती है ?
डेस्कटॉप कंप्यूटर या लैपटॉप, तेज इन्टरनेट सुविधा, प्रिंटर, स्कैनर, स्मार्ट फ़ोन और फसल कटाई प्रयोग के लिए वजन मापने की छोटी इलेक्ट्रॉनिक मशीन यह सभी प्राथमिक आवश्यकता है, लेकिन पटवारी को यह सुविधा शासन द्वारा बिल्कुल भी नहीं दिया जाता है, लेकिन साप्ताहिक भुइयां सॉफ्टवेयर में कार्य की प्रगति जरुर शासन मांगती है, और प्रगति नहीं होने पर घोर लापरवाही का कारण बताओ नोटिस जरुर थमा देती है । उपरोक्त सभी प्राथमिक उपकरणों का बंदोबस्त पटवारी को स्वयं करना होता है, यहाँ तक कि कार्यालय भी स्वयं के व्यय से लेना होता है, क्योंकि कार्य राह चलते तो कर नहीं सकते और पटवारी रिकॉर्ड जो बड़े एवं भारी जीर्ण शीर्ण रजिस्टरो में हैं उन्हें कहीं तो रखना होगा, जिसकी सुरक्षा की भी जिम्मेदारी होती है ।
और महान भुइयां सॉफ्टवेयर को सुचारू रूप से चलाने के लिए सब सुविधा वाला एक कार्यालय तो चाहिए ।
अब आते हैं सिस्टम की ओर, हाँ आपने जरुर सुना होगा सिस्टम में आओगे तो ऐसा होगा वैसा होगा , सिस्टम में ऐसा ही होता है वगैरह वगैरह ! तो क्या होता है यह सिस्टम या तंत्र ? इसे एक मकड़जाल या दलदल कह सकते हैं, उदाहरण के तौर पर आप एक ऐसे जगह के पटवारी हैं, जो जगह पर्यटन या आवाजाही के दृष्टि से विख्यात जगह है, तब तो प्रोटोकॉल ड्यूटी नामक खतरनाक शब्द या इसके दुष्प्रभाव से बचा नहीं जा सकता मंत्री, मंत्रियों के निजी पहचान/रिश्तेदार, आला अधिकारी, आला अधिकारियों के निजी पहचान/रिश्तेदार का कोई भी व्यक्ति या समूह, उस जगह के अधिकारिक या गैर अधिकारिक या पारिवारिक दौरे पर यदि आये, तो पहले तो समीपस्थ सरकारी रेस्ट हाउस और सम्बंधित स्थान पर पटवारी को उनके खातिरदारी के लिए सुबह से तैनात कर दिया जाता है, कि उनके खातिरदारी में होने वाले खर्च सभी पटवारी अपने जेब से वहन करे, जो कि स्वागत के लिए बुके से लेकर आखरी पान, या गरम करके दिए गये बिसलेरी पानी, कभी कभी तो बाजार से थर्मस लाकर मिनरल वाटर गर्म करवा कर देना होता है और मेहमान के वाहन के लिए इंधन तक का खर्च, और जब तक मेहमान उपस्थित हैं, तब तक के खाने और अलग – अलग प्रकार के खर्च का हिसाब ही नहीं ।
और इसी तरह किसी अधिकारी का मोबाइल फ़ोन ख़राब हो तब तुरंत बनवाकर दो, किसी के बच्चे के लिए विद्यालय की ड्रेस बनवाओ, किसी का एडमिशन, किसी का टीवी मोबाइल रिचार्ज, और शहर में हो तो एयर टिकट बुकिंग्स तक ! इन सारी सुविधाओं की अपेक्षा एक घुसखोर पटवारी से की जाती है ।
इसके बाद यदि अधिकारी का अन्यत्र स्थानांतरण हो जाये, तो उनके सामान जिनमें बगीचा के गमले भी सम्मिलित हैं, के शिफ्टिंग का कार्य उसी घुसखोर/कामचोर पटवारी को दिया जाता है, जिसके खिलाफ कार्यवाही करने में अधिकारी थोड़ा सा भी विचार नहीं करते ।
बड़ा गजब का है ये सिस्टम ! इन सब खर्च के लिए पैसा, पटवारी कहाँ से लाए ???? अब तक नहीं सोचे तो सोचिये !!!
अब सबसे जरूरी बात विभागीय कामकाज पर, विभागीय कार्यों में नामान्तरण, बंटवारा, सीमांकन, अभिलेख दुरुस्ती, किसान किताब या पर्ची बनाना जैसे महत्वपूर्ण कार्य अकेले पटवारी के हाथ में नहीं होता है, इन सभी कार्यों का क्षेत्राधिकार राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार, तहसील के बाबु, अनुविभागीय अधिकारी के हाथ में होता है, और इनके आदेश का सिर्फ पालन पटवारी द्वारा करना होता है, लेकिन जमीनी और प्रारंभिक कर्मचारी होने के कारण पटवारी कार्य को शुरू करता है, लेकिन पूर्ण करने का अधिकार प्रायः तहसीलदार को होता है, और उस प्रकरण को पारित करने के एवज में अधिकारियों द्वारा नाजायज मांग पटवारियों को घुस लेने का आदेश प्रदान करता है ।
आदेश को यदि किसी पटवारी के द्वारा ठुकराया गया तो उसके अनगिनत परिणाम भुगतने पड़ते है । किसान किताब/ ऋण पुस्तिका जिसे पर्ची के नाम से भी जनता जानती है ,उसका मूल्य 10 रु अंकित है, जिसे तहसील के बाबुओं द्वारा पटवारियों को 100 रु से लेकर 500 रु में वितरण किया जाता है, और उसमें भी यदि पटवारी का निजी संबंध ठीक हो तभी किसान किताब प्राप्त होता है, और तैयार प्रारंभिक किसान किताब में अधिकारी के हस्ताक्षर का खर्च अलग !
अब आप खुद समझिये पटवारी क्यों घुमाता है ??? इन सबके अतिरिक्त पटवारियों की कमी से जूझता विभाग एक से अधिक हल्के का प्रभार एक पटवारी के कंधे पर लाद देता है, और पुरे एक पटवारी के वेतन के बजाय मात्र 250/- रु महीने में वहाँ का कार्य कराया जाता है, और यह 250/- रु भी कहीं-कहीं नहीं दिया जाता है, जबकि हल्के( कार्य क्षेत्र )में एक बार आने जाने में ही 100/- रु का पेट्रोल खर्च हो जाता है ।
अब क्या ही करे एक घुसखोर पटवारी ऐसे में ???
अब अपने वेतन से सरकारी काम के लिए आने जाने और अन्य खर्च कैसे करे पटवारी, उसका भी तो घर परिवार है ! इसके अलावा प्रत्येक ग्राम में पटवारी के सहयोग हेतु कोटवारों की नियुक्ति शासन द्वारा की गई है, जो बेहद कम वेतन पर रखे गये हैं, ऐसे में जब भी पटवारियों को इनसे काम करवाना हो, तो पहले इनके पेट्रोल एवं चाय नास्ता का प्रबंध करना होता है, तब जाके पटवारी का शासन द्वारा निर्देशित कार्य सिद्ध होता है, अन्यथा कोटवार का फ़ोन बंद या निराशा ही हाथ आता है ।
वर्ष में 3-4 महीने गिरदावरी का कार्य पटवारियों द्वारा किया जाता है, नियमावली के अनुसार जिसकी शुरुआत 15 सितम्बर से तय की गई है, लेकिन पिछले 3 वर्षो से बलात आदेशिका जारी करके इसे भरे बरसात में कराया जा रहा है, और पटवारी को कार्यवाही का डर दिखाकर भरे बरसात और दलदल युक्त खेतों में पटवारी रिकॉर्ड के साथ जाने को मजबूर किया जाता है । चाहे एक हल्का हो या एक से अधिक ।
तय समय में भरे बरसात में प्रत्येक खसरे का अर्थात गाँव के इंच मात्र भूमि का क्षेत्र निरीक्षण, उसके बाद मोटे बड़े रजिस्टर या खसरा पांचसाला रिकॉर्ड में प्रविष्टि, फिर ऑनलाइन भुइयां सॉफ्टवेयर में प्रविष्टि जो कि अमूमन सुचारू रूप से कार्य नहीं करता, यह सब करना होता है । और कभी ऐसा नहीं है कि इतने कार्य के साथ आपका अन्य कार्य से राहत हो ।
तो क्या क्या बलात आदेशिका नियमावली से ऊपर है ? जो मनमानी ढंग से करा रहे हैं । मौखिक आदेश पर गलत तरीके से किसानों का धान का रकबा काटने लिए प्रताड़ित किया जाता है, ताकि बाद में अपना नाम कहीं न आए और इन सबका विवाद पटवारी खुद समझे, और ऐसे कार्य से किसी अधिकारी का CR भी तो मजबूत होता है और मंत्री से पीठ थपथपवा के प्रमोशन और मनचाहा जगह भी तो लेना है ! क्योंकि शासन को धान का रकबा कम चाहिए और यदि पटवारी रकबा काटें तो किसान के लिए बुरा बनते हैं और ना काटे तो अधिकारी के लिए बुरा ।
व्हाट्सएप में भेजा गया प्रत्येक अहस्ताक्षरित/हस्ताक्षरित आदेश मान्य और बंधनकारी होता है, लेकिन किसी परम मज़बूरी में भी उसी व्हाट्सएप पर छुट्टी का आवेदन मान्य नहीं है, और हाँ सरकारी अवकाश एवम रविवार को भी आप कहीं नहीं जा सकते, वह पटवारी के लिए मान्य नहीं है । किसी भी प्रकार का वार्षिक सरकारी रिपोर्ट जमा करते समय सम्बंधित कार्यालय में प्रति हल्का 1000-500 रु का चढ़ावा देय है, जिसका कोई औचित्य नहीं होता है ।
यदि किसी वन- ग्राम का राजस्व ग्राम में परिवर्तन होना है, तब उस ग्राम का बंदोबस्त अधिकारियों द्वारा बंदोबस्त का कार्य किया जाता है, जिसमें ग्राम का नवीन अभिलेख तैयार किया जाता है, जो कि राजस्व अधिकारी के स्तर का कार्य होता है, जिसके लिए टीम गाँव में जाती है, और यह कार्य कई दिनों या हफ्तों तक चल सकता है, और इन सबमें काफी समय और पैसा शासन का खर्च होता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों यह कार्य पटवारियों के टीम को दिया जा रहा है, जिनके अधिकार क्षेत्र और स्तर से बहुत ऊपर का कार्य है, निहित मंशा यह प्रतीत होती है, कि इसका पूरा खर्च पटवारी खुद अपने जेब से वहन करे, जिसे बलात आदेशिका जारी करके कराया जा सकता है, पटवारी को गधे की तरह सभी प्रकार का कार्य लाद दिया जाता है । और वह भी परिवार चलाने के लिए नौकरी कर रहा है, क्या करे मज़बूरी है ।
राजस्व विभाग में पटवारियों के साथ अन्याय तब होता है जब उन्हें उनके काम के आधार पर नहीं, उनके दाम के आधार पर हल्का दिया जाता है, अतः जो अच्छा कमाकर देगा उसे उतना बड़ा हल्का, और जो इनसे तटस्थ हो उन्हें लगभग वनग्राम के श्रेणी के हल्के प्राप्त होते हैं, और पारिवारिक दृष्टिकोण के चलते यदि पटवारी किसी निकट हल्के में जाना चाहता है तब उसे अपने अधिकारी को मोटा चढ़ावा देना होगा चाहे आप किसी भी मज़बूरी में फंसे हों ।
हाल ही में शासन द्वारा एक तुगलकी फरमान जारी हुआ है कि ढाई साल से अधिक समय से एक ही हल्के में पदस्थ पटवारियों का तबादला किया जाना है, अब अधिकारीयों/ मंत्रियों को यह पॉवर मिल गया कि तबादला कारोबार से अपनी जेबें भर सकें, जबकि किसी जगह के बारे में गहन जानकारी ही पटवारी को मजबूत बनाती है, जिसके कारण शासन के महत्वपूर्ण कार्य समय पर पूर्ण हो पातें हैं ।
अब चुकिं तबादला करने की शासन की मंशा अब तक बहुत बुद्धजीवियों के समझ में यही है कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए यह कदम उठाया जाना उचित है, तब तो यह तर्क संगत नहीं है, हाँ जेबें जरुर भरे जायेंगे ।
पटवारियों को भ्रष्ट कहने वाली जनता और छुटपुट जन प्रतिनिधी वास्तव में स्वयं भ्रष्ट होते हैं, बहुत से जनता जनार्दन अपने नाजायज और गैर क़ानूनी काम कराने के लिए मोटे रकम का झांसा पटवारियों को देते हैं, जैसे अभिलेख से सगे संबंधियों के नाम विलोपित कराना , फौती नामान्तरण के समय अपने बहनों का नाम छूपाना, बंटवारा बहनों को न देना या कम देना, पर्ची गिरवी रखकर नया पर्ची बनवाना और जमीन बेचना, शासकीय जमीन को अपने नाम करवाने की कोशिश करना, बेजा कब्ज़ा करके शासकीय जमीन पर अपना हक़ समझना, पड़ती भूमि पर भी धान बिकवाने के लिए कहना, बिना किसी जरूरी प्रक्रिया से गुजरे ही कार्य करवाने की कोशिश करना, मुवावजा भी चाहिए और धान भी बेचना होता है, इत्यादि इत्यादि ।
इसके बाद पटवारी यदि नहीं माने तब गलत आरोप लगाकर अज्ञात शिकायत करना, वीडिओ वायरल करना और समाचार पत्र में छपवाने की धमकी देना, यह सब कार्य जनता क्यों करने लग जाती है ???
इसी प्रकार कुछ जनप्रतिनिधी और पत्रकार अपने निजी स्वार्थ के कार्यों को कराने हेतु अपने पार्टी, पहुँच, पोसिजन का डर दिखाकर डराना धमकाना, झूठे आरोप लगाकर तबादला और निलंबन का उपहार पटवारियों को दिलवाते हैं । तो यह कहना कहाँ तक सार्थक है कि, पटवारी घुस लेते हैं ???
आप क़ानूनी प्रकिया से बचना चाहते हैं, बिना किसी अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत हुए घर बैठे काम चाहते है, पेशी में आप जाना नहीं चाहते । बेजा कब्ज़ा जमीन छोड़ना नहीं चाहते, समय से पहले कार्य पूर्ण चाहते हैं, तो फिर कैसे कह सकते हैं पटवारी घुस लेता है ??
पटवारी को नकारात्मक आदेश उसके घर तक रात 11 बजे तक भी तामिल कराया जाता है, और सकारात्मक आदेश के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं, पटवारी को गोपनीय प्रतिवेदन भी स्वयं बनवाना होता है, कार्यवाही करने में अधिकारी जरा भी देरी नहीं लगाते, लेकिन बात जब पक्ष लेने की हो तब ऐसा मौका कभी नहीं आता, सभी जगह एक पटवारी को हलाल किया जाता है, इस सिस्टम के कारण हर जगह पटवारी की बलि चढ़ाई जाती है, हाँ कुछ जरुर हैं जो अनुपात से कहीं अधिक और बेहिसाब कुछ भी करते होंगे, लेकिन मज़बूरी में फंसे पटवारी की संख्या उस गिनती से कहीं अधिक है ।
न्याय कहीं नहीं है, वही लेने वाला ही आप पर कार्यवाही करेगा जब समय आयगा, और फिर बहाली का फिर चढ़ावा, ऐसे में क्या ही करे एक कथित मजबूर, घुसखोर, कामचोर पटवारी??? जब इन सब क्यों, कैसे का उत्तर आपको मिल जाये तब कहते बने तो कहिये कि पटवारी घुसखोर है, और अधिकारी तब कार्यवाही का डर दिखाए जब खुद कभी किसी से 1 रु भी चढ़ावा, GST, खर्चा पानी, घुस, फाइल का वजन, चलने वाला कागज, कमीशन और न जाने किस किस नाम से विख्यात रुपया न लिया हो ! विषय गंभीर है बहुतों को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता मगर बहुत से ऐसे भी है जो मजबूरन तिनका तिनका अपना स्वाभिमान गँवा रहे है ।
ऐसा कोई सरकारी कार्यालय नहीं होगा जो सुबह 6 बजे से खुलता होगा मगर पटवारी के ऑफिस/ घर में लोगों को सुबह 6 बजे से रात में 9 बजे तक (अवकाश के दिनों में भी ) कभी भी अपनी मर्ज़ी के अनुसार जाने की इजाज़त है ।
अरे पटवारियों का भी अपना निजी जीवन है, उसे भी अपना जीवन जीने की स्वतंत्रता है मगर कोई समझने वाला कहा है ! घुसखोर लोग है जब चाहो जैसे चाहो परेशान करो न माने तो वीडिओ बनाओ और वायरल कर दो, सजा तो मिलनी चाहिये घुसखोर और कामचोर जो है !!!