आयोजन : गुरु के वचनों पर विश्वास करके श्रद्धाभक्ति पूर्वक साधना करने से परमात्मा मिल जाते है, भगवान सदैव भावग्राही होते हैं- किशोरी आराध्य शर्मा। चमन बहार

Believing in Guru’s words and doing spiritual practice with devotion, God is found, God is always empathetic – Kishori Aaradhya

बिलाईगढ़।

ट्रांस महानदी क्षेत्र के प्रमुख तीर्थस्थल शिवरीनारायण से लगभग 13-14 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में स्थित ग्राम देवरहा में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया है। मनहरणलाल साहू प्रधान पाठक देवरहा, रानी- रामकुमार साहू, टिकेश्वरी- देवेंद्र साहू ,तेजस्विनी- पुष्पेंद्र साहू एवं उनके परिवार द्वारा विश्व कल्याण हेतु श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन हुआ है। उरला, भिलाई (छत्तीसगढ़) से आई हुई किशोरी आराध्या शर्माजी व्यासासीन होकर संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा का बखान कर रही हैं। कथा गांव की सहज, सरल छत्तीसगढ़ी भाषा में कहीं जा रही है, ताकि सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी कथा को समझ सके।

कथा के चतुर्थ दिवस ध्रुव चरित्र का वर्णन करती हुई किशोरीजी ने बताई कि जो मनुष्य अपने सदगुरुदेव के बताए गए साधना के पथ पर विश्वास करके श्रद्धा भक्ति पूर्वक भगवत्प्राप्ति हेतु साधना करता है, उसे भगवान मिल ही जाते हैं। भगवान सदैव भावग्राही होते हैं। भाववस्य भगवान, सुख निधान करुणा भवन।तजि ममता मदमान,भजिय सदा सीतारमन। गुरु के वचनों पर जिसे विश्वास नहीं होता, उसे स्वप्न में भी सुख एवं सिद्धि नहीं मिलती है। गुरु के वचन प्रतिति न जेही । सपने हुं सुगम न सुख सिद्धि तेही। बल्कि साधना काल मे तो व्यक्ति के लिए भगवान से भी गुरु का अधिक महत्व होता है। इसीलिए श्री रामचरितमानस में भगवती मां पार्वती जी कहती हैं कि तजऊं न मैं नारद के उपदेशू। आप कहहिं सत बार महेशू।। इसका तात्पर्य यह है कि यदि हमें ईष्ट से प्रेम करने के लिए कोई मना करें तो वह व्यक्ति के लक्ष्य के ही विपरीत होगा। इस कारण ईष्ट प्रेम को किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ना चाहिए। भारत के प्रसिद्ध संत कबीरदासजी ने तो यहां तक कहा है कि यदि मुझे गुरु और गोविंद दोनों एक साथ मिलते हैं, तो मैं सर्वप्रथम गुरु को अधिक महत्व दूंगा क्योंकि गुरुदेव ही हैं, जो भगवान की प्राप्ति कराते हैं ।गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पांय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताया।


कथा सुनाती हुई किशोरीजी ने कही कि, महाराज मनु एवं शतरूपा के दो पुत्र उत्तानपाद एवं प्रियव्रत तीन पुत्रियां देवहूती, आकूति एवं प्रसूति हुई ।राजा उत्तानपाद के दो रानी धी।एक सुनीति अर्थात भजना नंद एवं दूसरी सुरुचि अर्थात विषयानंद। भजनानंद का पुत्र होता है ध्रुव। ध्रुव का अर्थ अविनाशी, यानी जिसका विनाश नहीं होता है। सुरुचि (विषयानंद) का पुत्र उत्तम हुआ। उत्तम शब्द का अर्थ यहां अज्ञानता है, वही सुरुचि का फल है। माता सुनीति ने अपने पुत्र को भक्त बनाया। माताजी संस्कार देने के कारण अपने संतान की प्रथम गुरु होती हैं। सुरुचि एवं उत्तानपाद के व्यवहार से व माता सुनीति के द्वारा दी गई संस्कार से ध्रुव तपस्या के लिए वन की ओर चले जाते हैं। मार्ग में उन्हें विश्वकल्याण में निरंतर संलग्न रहने वाले भक्त शिरोमणि नारदजी मिलते हैं ।नारदजी ने ध्रुव को घर वापस जाने के लिए कई प्रकार से समझाया, किंतु ध्रुवजी ने तपस्या कर परम पद को पाने के लिए ठान लिया था, इस कारण घर वापस आने से मना कर दिया, तब ध्रुवजी के अटल निष्ठा को देखकर नारदजी ने उन्हें मंत्र प्रदान किया। साधना की पद्धति बताये एवं भगवान के स्वरूप का ध्यान करने के लिए कहा। नारदजी के बताए अनुसार ध्रुवजी ने ” ऊं नमो भगवते वासुदेवाय:” द्वादश अक्षरी मंत्र का जप करते हुए श्रद्धाभक्ति पूर्वक तपस्या किया। भगवान विष्णुजी ध्रुवजी की तपस्या एवं भक्ति से प्रसन्न होकर ध्रुव जी को दर्शन देने नहीं अपितु ध्रुवजी का दर्शन करने हेतु पधारे। इस तरह ध्रुवजी ने नारद जी के बताए अनुसार साधना करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। जो व्यक्ति सदगुरुदेव के बताए अनुसार श्रद्धाभक्ति पूर्वक एकनिष्ठ होकर साधना करता है, वह अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करता है।


कथावाचिका किशोरी जी ने भगवान वामन एवं बलि की कथा को विस्तार से कहकर कथाप्रेमियों को आनंदित कर दीं।किशोरीजी ने कथा के बीच-बीच में मधुर -मधुर भजन गाकर श्रोताओं को नृत्य करने के लिए मजबूर कर दी। कथा सुनने के लिये आसपास के गांव मिरचीद, मडकडी,कैथा, बनाहिल, नगरदा, ठकुरदिया, अमलडीहा, टुंडरी आदि गांवों से हजारों की संख्या में लोगबाग आकर, कथा सुनकर इस कथा का लाभ उठा रहे हैं।आयोजक परिवार द्वारा श्रोताओं के लिए भोजन भंडारा का उत्तम व्यवस्था किया गया है।

error: Content is protected !!